Question 1:
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे?
बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे परन्तु उनमें साधु कहलाने वाले गुण भी थे -
(1) कबीर के आर्दशों पर चलते थे, उन्हीं के गीत गाते थे।
(2) कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
(3) किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से झगड़ा करते थे।
(4) किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।
(5) कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपंथी मठ में ले जाते, वहाँ से जो कुछ भी भेंट स्वरुप मिलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते थे।
(6) उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था।
(1) कबीर के आर्दशों पर चलते थे, उन्हीं के गीत गाते थे।
(2) कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।
(3) किसी से भी दो-टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से झगड़ा करते थे।
(4) किसी की चीज़ नहीं छूते थे न ही बिना पूछे व्यवहार में लाते थे।
(5) कुछ खेत में पैदा होता, सिर पर लादकर पहले उसे कबीरपंथी मठ में ले जाते, वहाँ से जो कुछ भी भेंट स्वरुप मिलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले जाते थे।
(6) उनमें लालच बिल्कुल भी नहीं था।
Question 2:
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहती थी क्योंकि भगत के बुढ़ापे का वह एकमात्र सहारा थी। उसके चले जाने के बाद भगत की देखभाल करने वाला और कोई नहीं था।
Question 3:
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं?
बेटे की मृत्यु पर भगत ने पुत्र के शरीर को एक चटाई पर लिटा दिया, उसे सफे़द चादर से ढक दिया तथा गीत गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त की। उनके अनुसार आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहनि अपने प्रेमी से जा मिली। यह आनंद की बात है, इससे दु:खी नहीं होना चाहिए।
Question 4:
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।
बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे लेकिन उनमें साधु संन्यासियों के गुण भी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे। कबीर के आर्दशों का पालन करते थे। सर्दियों में भी अंधेरा रहते ही पैदल जाकर गंगा स्नान करके आते थे तथा भजन गाते थे।
वेशभूषा से ये साधु लगते थे। इनके मुख पर सफे़द दाढ़ी तथा सिर पर सफे़द बाल थे, गले में तुलसी के जड़ की माला पहनते थे, सिर पर कबीर पंथियों की तरह टोपी पहनते थे, शरीर पर कपड़े बस नाम मात्र के थे। सर्दियों के मौसम में बस एक काला कंबल ओढ़ लेते थे तथा मधुर स्वर में भजन गाते-फिरते थे।
वेशभूषा से ये साधु लगते थे। इनके मुख पर सफे़द दाढ़ी तथा सिर पर सफे़द बाल थे, गले में तुलसी के जड़ की माला पहनते थे, सिर पर कबीर पंथियों की तरह टोपी पहनते थे, शरीर पर कपड़े बस नाम मात्र के थे। सर्दियों के मौसम में बस एक काला कंबल ओढ़ लेते थे तथा मधुर स्वर में भजन गाते-फिरते थे।
Question 5:
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?
वृद्ध होते हुए भी उनकी स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। सर्दी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे भोर में सबसे पहले उठकर गाँव से दो मील दूर स्थित गंगा स्नान करने जाते थे, खेतों में अकेले ही खेती करते तथा गीत गाते रहते। विपरीत परिस्थिति होने के बाद भी उनकी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। एक वृद्ध में अपने कार्य के प्रति इतनी सजगता को देखकर लोग दंग रह जाते थे।
Question 6:
पाठ के आधर पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।
बालगोबिन भगत के गीतों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। खेतों में जब वे गाना गाते तो स्त्रियों के होंठ बिना गुनगुनाए नहीं रह पाते थे। गर्मियों की शाम में उनके गीत वातावरण में शीतलता भर देते थे। संध्या समय जब वे अपनी मंडली समेत गाने बैठते तो उनके द्वारा गाए पदों को उनकी मंडली दोहराया करती थी, उनका मन उनके तन पर हावी हो जाता था, मन के भाव शरीर के माध्यम से प्रकट हो जाते थे और वे नाचने-झूमने लगते थे।
Question 7:
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। ये निम्नलिखित हैं -
(1) जब बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु हुई उस समय सामान्य लोगों की तरह शोक करने की बजाए भगत ने उसकी शैया के समक्ष गीत गाकर अपने भाव प्रकट किए —“आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया है। यह आनंद मनाने का समय है, दु:खी होने का नहीं।“
(2) बेटे के क्रिया-कर्म में भी उन्होंने सामाजिक रीति-रिवाजों की परवाह न करते हुए अपनी पुत्रवधू से ही दाह संस्कार संपन्न कराया।
(3) समाज में विधवा विवाह का प्रचलन न होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी कर देने को कहा।
(4) अन्य साधुओं की तरह भिक्षा माँगकर खाने के विरोधी थे।
(1) जब बालगोबिन भगत के बेटे की मृत्यु हुई उस समय सामान्य लोगों की तरह शोक करने की बजाए भगत ने उसकी शैया के समक्ष गीत गाकर अपने भाव प्रकट किए —“आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया है। यह आनंद मनाने का समय है, दु:खी होने का नहीं।“
(2) बेटे के क्रिया-कर्म में भी उन्होंने सामाजिक रीति-रिवाजों की परवाह न करते हुए अपनी पुत्रवधू से ही दाह संस्कार संपन्न कराया।
(3) समाज में विधवा विवाह का प्रचलन न होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पुत्रवधू के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी कर देने को कहा।
(4) अन्य साधुओं की तरह भिक्षा माँगकर खाने के विरोधी थे।
Question 8:
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
बादल से घिरे आसमान में, ठंडी हवाओं के चलने के समय अचानक खेतों में से किसी के मीठे स्वर गाते हुए सुनाई देते हैं। उनकी मधुर वाणी को सुनते ही लोग झूमने लगते हैं, स्त्रियाँ स्वयं को रोक नहीं पाती है तथा अपने आप उनके होंठ काँपकर गुनगुनाते लगते हैं। बालगोबिन भगत के गाने से संपूर्ण सृष्टि मिठास में खो जाती है।