Question 8:
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?
बिस्मिल्ला खाँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें हमें प्रभावित करती हैं -
(1) ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।
(2) मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।
(3) भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।
(4) वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।
(5) उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।
(6) वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।
(1) ईश्वर के प्रति उनके मन में अगाध भक्ति थी।
(2) मुस्लिम होने के बाद भी उन्होंने हिंदु धर्म का सम्मान किया तथा हिंदु-मुस्लिम एकता को कायम रखा।
(3) भारत रत्न की उपाधि मिलने के बाद भी उनमें घमंड कभी नहीं आया।
(4) वे एक सीधे-सादे तथा सच्चे इंसान थे।
(5) उनमें संगीत के प्रति सच्ची लगन तथा सच्चा प्रेम था।
(6) वे अपनी मातृभूमि से सच्चा प्रेम करते थे।
Question 9:
मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव को अपने शब्दों में लिखिए।
मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान शोक मनाते थे। इसलिए पूरे दस दिनों तक उनके खानदान का कोई व्यक्ति न तो मुहर्रम के दिनों में शहनाई बजाता था और न ही संगीत के किसी कार्यक्रम में भाग लेते थे। आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती थी। इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंड़ी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते हुए जाते थे। इन दिनों कोई राग नहीं बजता था। उनकी आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों की शहादत में नम रहती थीं।
Question 10:
बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे, तर्क सहित उत्तर दीजिए।
बिस्मिल्ला खाँ भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे। इसके लिए उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया है। 90 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने शहनाई बजाना नहीं छोड़ा। उन्होंने जीवनभर संगीत को संपूर्णता व एकाधिकार से सीखने की जिजीविषा को अपने अंदर जिंदा रखा। उनमें संगीत को सीखने की इच्छा कभी खत्म नहीं हुई। खुदा के सामने वे गिड़गिड़ाकर कहते - ''मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ।'' खाँ साहब ने कभी भी धन-दौलत को पाने की इच्छा नहीं की बल्कि उन्होंने संगीत को ही सर्वश्रेष्ठ माना। वे कहते थे - ''मालिक से यही दुआ है - फटा सुर न बख्शें। लुंगिया का क्या है, आज फटी है, तो कल सी जाएगी।"
इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।
इससे यह पता चलता है कि बिस्मिल्ला खाँ कला के अनन्य उपासक थे।